बिहार के नियोजित शिक्षकों का हड़ताल गुरुवार को 25वें दिन भी जारी है। बिहार राज्य शिक्षक संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर हड़ताली शिक्षकों द्वारा बिहार के लगभग सभी जिलों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, शिक्षा मंत्री कृष्ण नंदन वर्मा के पुतले फूं’के जा रहे हैं। शिक्षकों और सरकार के बीच टकराव थमने का नाम नहीं ले रहा है। बेगुसराय, सहरसा, शिवहर, सीतामढ़ी, बेतिया, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबन सहित सभी जिलों में शिक्षक डटे हुए हैं। वहीं होली के दिन बिहार हड़ताली शिक्षकों ने धरना स्थलों पर बैठकर सरकार की तानाशाही के विरोध में वेदना प्रकट किया।
इस बीच शिक्षकों पर दवाब बनाने के प्रयास में बोर्ड परीक्षा के कॉपी मूल्यांकन में भाग नहीं लेने वाले शिक्षकों पर क़ानूनी कार्रवाई ने शिक्षकों को और आक्रोश से भर दिया है। बिहार राज्य शिक्षक संघर्ष समन्वय समिति के राज्य संयोजक ब्रजनंदन शर्मा ने कहा है कि सरकार शिक्षकों के शांतिपूर्ण आंदोलन को कमजोर नहीं समझें। नियोजित शिक्षकों को सहायक शिक्षकों के समान वेतनमान, नियमित शिक्षकों की भांति सेवा शर्त, राज्यकर्मी का दर्जा, पुरानी पेंशन पद्धति, मृत शिक्षक के आश्रितों को बिना किसी शर्त के अनुकंपा पर बहाली तथा राज्य में हड़ताली शिक्षकों पर की गई विभागीय और अनुशासनिक कार्रवाई को वापस लिया जाय। हमारी मांगे सरकार पूरी करें हम हड़ताल वापस ले लेंगे।
शिक्षकों ने 13 मार्च से 20 मार्च तक विभिन्न जिलों में अपनी मांगों के समर्थन में एवं सरकार के नीतियों के खिलाफ नुक्कड़ नाटक के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का निर्णय लिया है। इस दौरान शिक्षकों ने कहा कि हम जनता के बीच जाकर अभिभावक, बुद्धिजीवियों एवं पंचायत प्रतिनिधियों से समर्थन पत्र जुटाएंगे और 23 मार्च को शिक्षा बचाओ-बिहार बचाओ रैली गांधी मैदान पटना में करेंगे।
सरकार का यही रवैया रहा हमारी मांगे पूरी नहीं हुई तो आने वाले दिनों में बिहार के तमाम शिक्षक चुनाव का भी बहिष्कार करेंगे। जब तक सरकार हमलोगों से वार्ता कर हड़ताल समाप्त नहीं करवाती, तब तक सभी शिक्षक चुनाव, ट्रेनिंग, बीएलओ सहित सभी शैक्षणिक एवं गैर शैक्षणिक कार्यो से दूर रहेंगे। अब देखना होगा कि लंबा खींचता जा रहे शिक्षकों के हड़ताल पर सरकार क्या अमल करती है या सरकार अपनी शर्तों पर वेतन वृद्धि के साथ शिक्षकों को मनाने में कामयाब होती है। क्योंकि कुछ महीने बाद बिहार में विधानसभा का चुनाव होना है ऐसे में चुनावी तैयारी अधिकरी स्तर पर शुरू हो चुकी है। चुनाव में सबसे अधिक योगदान शिक्षकों का होता है। अगर यही हाल बना रहा तो चुनाव में भी इसका साफ़ असर देखने के लिए मिल सकता है।