पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार को कहा कि दिल्ली में हुए दंगों की उच्चतम न्यायालय की निगरानी में न्यायिक जांच होनी चाहिए। इन दंगों में कम से कम 42 लोग मारे गए हैं। माल्दा जिले के सुजापुर में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए बनर्जी ने कहा कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों की उच्चतम न्यायालय की निगरानी में न्यायिक जांच होनी चाहिए। उन्होंने दावा किया गया कि राष्ट्रीय राजधानी में दंगों के बाद “700 से अधिक लोग” लापता हो सकते हैं।
बनर्जी ने आरोप लगाया कि दिल्ली सांप्रदायिक हिंसा से ध्यान भटकाने के लिए “कुछ लोग और चैनल” देश में कोरोना वायरस को लेकर घबराहट पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। ममता ने कहा कि दिल्ली में “खुश और स्वस्थ” लोग हिंसा के कारण मारे गए, वायरस के कारण नहीं।
उन्होंने दक्षिणी दिनाजपुर में तृणमूल कांग्रेस की एक सभा में कहा, “आजकल कुछ लोग कुछ ज्यादा ही कोरोना, कोरोना चिल्ला रहे हैं। हां, यह एक खतरनाक बीमारी है, लेकिन दहशत पैदा नहीं करें। कुछ (टीवी) चैनल दिल्ली हिंसा को दबाने के लिए इसका प्रचार कर रहे हैं। इसके होने पर रिपोर्ट करें। हम नहीं चाहते कि बीमारी फैले, लेकिन दहशत नहीं पैदा करें।” केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के अनुसार, भारत में कोरोना वायरस के अब तक कुल 28 मामलों का पता चला है। इनमें से कोई भी पश्चिम बंगाल से नहीं है।
ममता ने कहा, “दिल्ली हिंसा में जो लोग मारे गए, वे कोरोना वायरस या किसी अन्य रोग से नहीं मरे। यदि उनकी मौत वायरस से हुयी होती तो हम कम से कम इतना जानते कि वे एक खतरनाक बीमारी के कारण मर गए। लेकिन स्वस्थ और खुशहाल लोगों की निर्दयतापूर्वक जान ले ली गयी।” भाजपा या केंद्र का नाम लिए बगैर तृणमूल प्रमुख ने कहा कि उन्होंने माफी तक नहीं मांगी। “उनके अहंकार के बारे में सोचिए। वे कह रहे हैं गोली मारो … मैं आगाह करती हूं कि बंगाल और दिल्ली एक जैसे नहीं हैं।”
ममता ने दावा किया कि राष्ट्रीय राजधानी में हिंसा के बाद सैकड़ों लोग लापता हैं और नालों से अब भी शव बरामद किए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत में बस गए बांग्लादेशी लोगों की नागरिकता के मुद्दे पर मंगलवार को मीडिया ने उनकी बात को गलत तरीके से पेश किया। उन्होंने कहा, “मैंने कभी नहीं कहा कि जो बांग्लादेशी इस देश में आए हैं, वे भारतीय नागरिक हैं।
विभाजन के दौरान, पाकिस्तान से कई लोग हमारे देश में आए, पंजाब, गुजरात और दिल्ली में, और कई लोग बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) से बंगाल आए।” ममता ने कहा, “इन (शरणार्थियों) के आने के बाद, नेहरू-लियाकत संधि पर हस्ताक्षर किए गए जिसके तहत पाकिस्तान से भारत आने वालों को नागरिकता प्रदान की गयी। फिर 1971 में (बांग्लादेश) मुक्ति संग्राम के दौरान इंदिरा गांधी और शेख मुजीबुर रहमान के बीच एक संधि हुई थी जिससे उस देश से आए शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता प्रदान की गयी। मैं उनके बारे में बोल रही थी।”