दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 (Delhi Assembly Election 2020) में आम आदमी पार्टी (AAP) की ऐतिहासिक जीत की गूंज दूसरे राज्यों तक भी सुनी जा सकती है। राजनीतिक विश्लेषक, आम आदमी पार्टी की इस जीत के कई मायने निकाल रहे हैं। दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में ऐसी भी खबरें जोर पकड़ने लगी हैं कि जेडीयू के पूर्व उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) अब आम आदमी पार्टी का दामन थाम सकते हैं।
प्रशांत किशोर की नई रणनीति में नीतीश कुमार कितने मुश्किल?
इस साल के अंत में बिहार में विधानसभा का चुनाव होने जा रहा है। ऐसे में प्रशांत किशोर का आम आदमी पार्टी ज्वॉइन करना बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव हो सकता है। बिहार के राजनीतिक गलियारे में सुगबुगाहट शुरू हो गई है कि प्रशांत किशोर ने युवाओं के जरिए और खासकर कन्हैया कुमार जैसे कुछ और युवा चेहरों को आगे कर नीतीश कुमार को मात देने की पूरी तैयारी कर ली है।
माना जा रहा है कि प्रशांत किशोर इस साल बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव में सक्रिय भूमिका निभाएंगे। पिछले महीने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से टकराव के बाद जेडीयू ने प्रशांत किशोर को पार्टी से निकाल दिया था, तब उन्होंने कहा था कि वह पटना जाकर नीतीश का जवाब देंगे। वह इससे पहले 11 फरवरी को पटना में अपने अगले कदम के बारे में घोषणा करने वाले थे, लेकिन दिल्ली में मतगणना होने की वजह से राष्ट्रीय राजधानी आ गए और उनकी घोषणा टल गई।
प्रशांत क्या घोषणा करने वाले हैं, इसको लेकर बिहार की सियासत में जितनी मुंह उतनी बातें चल रही हैं। उनकी टीम के एक सदस्य ने बताया कि पीके कल कोई बड़ा बम फोड़ेंगे। फिलहाल दो संभावनाएं जताई जा रही हैं या तो वह अपना राजनीतिक फ्रंट बनाएंगे या गैर-राजनीतिक फ्रंट। चूंकि दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल के रणनीतिकार के रूप में काम करने की वजह से उनकी शैली को नजदीक से देख चुके हैं तो वह उस मॉडल की तर्ज पर बिहार में कुछ कर सकते हैं।
वर्ष 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में ‘नीतीश फॉर बिहार’ कैंपेन के लिए काम कर चुके एक शख्स ने कहा, ‘मेरा मानना है कि प्रशांत किशोर की पूरी कोशिश बिहार में केजरीवाल फॉर्मूले को लागू करने की होगी। प्रशांत किशोर युवा शक्ति के सहारे बिहार का केजरीवाल बनने की कोशिश करेंगे। वह बदलाव और नई राजनीति को अपना हथियार बनाएंगे।
साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि यदि आप सोशल मीडिया पर उनकी टीम की गतिविधियों पर नजर रखे हुए हों तो आपको अंदाजा होगा कि प्रशांत किशोर के जेडीयू के उपाध्यक्ष रहते ही उनका संगठन I-PAC प्रदेश के ऐसे लाखों युवाओं का प्रोफाइल तैयार कर चुकी है, जो सक्रिय राजनीति में आना चाहते हैं। अब उनके नए मिशन में उनका यह डाटाबेस काम आने वाला है।
जेडीयू से जुड़ने के बाद पीके ने बिहार के युवाओं को राजनीति से जोड़ने की शुरुआत की थी। बिहार के विभिन्न शहरों से लेकर दिल्ली में भी इसको लेकर लगातार युवाओं से मुलाकात की थी। इसके लिए उन्होंने ‘यूथ इन पॉलिटिक्स’ कैंपेन की शुरुआत की थी। इस कैंपेन की साइट के मुताबिक पौने चार लाख से ज्यादा युवा उनके साथ जुड़ चुके हैं। उनके तेवर से साफ है कि प्रशांत किशोर बिहार में अब वह किसी भी पार्टी के लिए रणनीतिकार या सलाहकार के तौर पर काम नहीं करेंगे बल्कि दो साल पहले उन्होंने जो राजनीतिक यात्रा शुरू की थी, उसे ही धार देंगे।
जेडीयू ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ सीएए और एनपीआर के मुद्दे पर लगातार पार्टी लाइन से बाहर जाकर बयान देने के कारण राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर और महासचिव पवन वर्मा को पार्टी से सस्पेंड कर दिया था। पार्टी से निकाले जाने के बाद प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर कहा था कि नीतीश कुमार इस बात को लेकर झूठ बोल रहे हैं कि अमित शाह के कहने पर उन्होंने मुझे जेडीयू ज्वाइन कराया था।
जेडीयू में नीतीश कुमार के करीबी एक नेता ने प्रशांत किशोर के संभावित अगले कदम के बारे में पूछे जाने पर कहा कि केजरीवाल अन्ना आंदोलन से निकले थे और दिल्ली की गद्दी तक पहुंचे। देश की राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ था, लेकिन बिहार की राजनीति में रातोंरात इस तरह का फेरबदल संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि पीके बिजनेस मॉडल की तर्ज पर काम करते हैं, जबकि बिहार जैसे प्रदेश में विचारधारा की राजनीति बहुत मजबूत है। उन्होंने प्रशांत किशोर किशोर की वैचारिक विश्वसनीयत पर सवाल उठाते हुए कहा कि वह जेडीयू के उपाध्यक्ष रहते हुए एनडीए के विरोधियों के लिए काम कर रहे थे।
पिछड़े और दलितों का वोट किसको मिलेगा?
पांडेय कहते हैं, “कन्हैया कुमार या प्रशांत किशोर का नेतृत्व पिछड़े और दलित स्वीकार कर पाएंगे, ये भी कहना जल्दबाजी होगा। हालांकि, कन्हैया कुमार को अभी युवा पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों का समर्थन मिलता दिख रहा है, लेकिन यह आगे भी रहेगा उस पर संदेह है। कन्हैया कुमार और प्रशांत किशोर बिहार में मंडल और कमंडल, भ्रष्टाचार, शिक्षा और स्वास्थ्य से मरहूम हो चुके बिहार को निकाल पाएंगे? क्या बिहार में भी डेवलपमेंट मॉडल को पिछड़े और दलित अपना लेंगे? लालू यादव का परिवार अगर बिहार में फिर से चेहरा बनेगा तो एनडीए या नीतीश कुमार को रोकना मुश्किल होगा।”
पीएम और आधा दर्जन सीएम संग काम कर चुके हैं पीके
प्रशांत किशोर की संस्था I-PAC 2014 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी और बीजेपी के लिए चुनावी रणनीति बनाने का काम कर चुकी है। इसके बाद बीजेपी से उनकी राह अलग हुई फिर वह बिहार में आरजेडी-जेडीयू के गठबंधन के लिए काम किए। पीके ने पंजाब में अमरिंदर सिंह, आध्र प्रदेश में जगन और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी संभाली। फिलहाल उनकी टीम पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और तमिलनाडु में डीएमके की भी मदद कर रही है।
बिहार की राजनीतिक इतिहास पर गौर करें तो 90 के दशक के बाद यहां तीन राजनीतिक धूरी रही है। बीजेपी, आरजेडी और जेडीयू। तीनों से कोई भी दो दल जब साथ आए हैं, तो सरकार उसी गठबंधन की बनी है। 2005, 2010 और 2015 के विधानसभा चुनाव और 2009 व 2019 लोकसभा के नतीजे भी इसके गवाह बने हैं।
इस साल अक्टूबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी, जेडीयू और लोजपा का गठबंधन है। एनडीए नीतीश कुमार के चेहरे पर ही चुनावी मैदान में उतरने जा रही है। ऐसे में नीतीश कुमार के रथ को रोकने की पीके की रणनीति कहां तक सफल होती है, यह देखने वाली बात होगी।