पिछले कुछ दिनों से शाहीन बाग में आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है । भाजपा कह रही है ये आप का किया धरा है और केजरीवाल सरकार इसे भाजपा की चाल बता रही है । इसी बीच कल एक शिरफिरे ने गोली चलाकर सनसनी मचा दी । इधर भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा ने टीवी पर तहलका मचाते हुए ये बयान दिया है कि वो लड़़का आप पार्टी से संबंधित है । लेकिन इन सबके बीच शाहीन बाग में मौजुद लोगों का कुछ और ही कहना है । आईये जानिये क्या कहती है दिल्ली ।
दिल्ली के केंद्र में मौजूद कनॉट प्लेस की एक ऊंची बहुमंज़िला इमारत में एक सिक्योरिटी गार्ड की हैसियत से काम करने वाले प्रवीण कुमार कहते हैं, “बीजेपी हर चुनाव को, यहाँ तक कि एमसीडी के चुनाव को भी, गंभीरता से लेती है और जी जान से चुनाव लड़ती है। पार्टी की हार हो या जीत इसका असर उसके मनोबल पर ज़रूर पड़ेगा।”
न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी के इमाम जाफ़र की राय में “दिल्ली में बीजेपी को हार मिली तो इसका असर अमित शाह और नरेंद्र मोदी की साख पर होगा। और अगर आम आदमी पार्टी की शिकस्त हुई तो पार्टी के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह भी लग सकता है।”
दिल्ली चुनावों के मद्देनज़र अमित शाह अपनी चुनावी सभाओं में केंद्र सरकार की उपलब्धियां गिना रहे हैं, जिनमें जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 का हटाया जाना, राम मंदिर का उनके पक्ष में आया फ़ैसला जैसी उपलब्धियाँ शामिल हैं।
लेकिन दिल्ली के चुनाव का फ़ैसला राष्ट्रीय मुद्दों पर नहीं होगा। तो फिर ऐसे में इसके नतीजों का असर देश की सियासत पर कैसे और क्यों पड़ेगा? जबकि दिल्ली को एक पूर्ण राज्य का भी दर्जा तक हासिल नहीं है।
दिल्ली के हिस्से में केवल सात लोकसभा सीटें हैं। विधानसभा सीटों की बात करें तो दिल्ली में केवल 70 सीटें हैं। दिल्ली की सरकार के अंतर्गत दिल्ली पुलिस तक नहीं आती क्योंकि सरकार के अधिकार सीमित हैं।
दिल्ली के नागरिक और वरिष्ठ पत्रकार पंकज वोहरा कहते हैं कि दिल्ली के चुनाव नतीजों का असर नेशनल पॉलिटिक्स पर हमेशा पड़ता है।
वो कहते हैं, “सारे नेता मानते हैं कि दिल्ली मिनी इंडिया है। दिल्ली में नेशनल मीडिया उपस्थित है जो दिल्ली के चुनाव को बेहद गंभीरता से कवर करती है जिस कारण इसकी आवाज़ भी दूर-दूर तक गूँजती है।”
आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता और वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष के अनुसार में दिल्ली का चुनाव एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय घटना है और 8 फ़रवरी को होने वाला दिल्ली विधानसभा चुनाव, केंद्र में सत्ता पर विराजमान भारतीय जनता पार्टी के लिए बेहद अहम है।
वो कहते हैं, “अगर आप रुझान देखें तो 2015 के गुजरात विधानसभा चुनाव में पार्टी बड़ी मुश्किल से जीती थी। कर्नाटक में वो (चुनावी नतीजों के बाद) भी सरकार नहीं बना सकी। छत्तीसगढ़ में बीजेपी हार गई। पंजाब, राजस्थान और मध्यप्रदेश में पार्टी को हार मिली। हरियाणा में अकेले बीजेपी सरकार नहीं बना सकी। महाराष्ट्र में भी वो सरकार नहीं बना सकी।”
आशुतोष कहते हैं, “अगर दिल्ली में जीत और हार का मार्जिन ज़्यादा होता है तो बीजेपी का कभी न हारने वाली पार्टी का भ्रम टूट जाएगा।”
उनके अनुसार बीजेपी की अगर हार होती है तो विपक्ष का मनोबल बढ़ेगा, “इससे विपक्ष का आत्मविश्वास बढ़ेगा कि अगर हम साथ चुनाव लड़ते हैं, तो मोदी को हराया जा सकता है। न ही वो अजेय हैं और न ही अमित शाह चाणक्य हैं।”