26 जनवरी 2020। इस दिन देश अपना 70वां गणतंत्र दिवस मनाएगा। 1950 में इसी तारीख को भारत का संविधान लागू हुआ था। इस समारोह से दो दिन पहले उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से एक ख़बर आई है। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, पहली बार भारत का संविधान प्रिंट करने वाली दो मशीनों को बेच दिया गया है। वो भी कबाड़ के भाव में। मात्र 1।5 लाख रुपये में। मशीनों के रख-रखाव में काफी ज्यादा खर्चा आ रहा था। इसलिए इसे बेचने का फैसला लिया गया। सॉव्रिन और मोनार्क नाम की इन दो मशीनों को ब्रिटेन की कंपनी कैबट्री एंड संस ने बनाया था।
26 नवंबर 1949। इस दिन को संविधान दिवस के तौर पर मनाया जाता है। क्योंकि इस दिन संविधान को अपनाया गया था। जब संविधान बनकर तैयार हो गया, सवाल उठा कि इसे लिखा कैसे जाए। तब पंडित नेहरू पहुंचे प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा के पास। संविधान की पहली कॉपी हाथ से लिखी गई। संविधान को अपने हाथों से अंग्रेजी में लिखा प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा ने। हिंदी कॉपी लिखी थी वसंत कृष्ण वैद्य ने। खूबसूरत कैलिग्राफी के लिए प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा ने एक भी पैसा मेहनताना में नहीं लिया था। शांतिनिकेतन के प्रफेसर नंदलाल बोस और उनके स्टूडेंट्स ने संविधान की कॉपी पर तस्वीरें उकेरी।
हाथ से लिखी इस कॉपी को सर्वे ऑफ़ इंडिया के नॉर्दर्न प्रिंटिंग ग्रुप ऑफिस में प्रिंट किया गया था। उस वक्त सर्वे ऑफ़ इंडिया के पास प्रिंटिंग का सबसे बड़ा और सुसज्जित कारखाना था। देहरादून स्थित सर्वे ऑफ़ इंडिया ने संविधान की 1000 प्रतियां प्रिंट की थी। सर्वे ऑफ़ इंडिया की स्थापना ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1767 में की थी। ये संस्था सर्वे और नक्शे से संबंधित काम करती है।
लिथोग्राफिक प्रिंटिंग। इसमें पानी और तेल का इस्तेमाल किया जाता है। पत्थर या मेटल की प्लेट के जरिए चिकनी सतह पर प्रिंट किया जाता है। देहरादून के हाथीबरकला वाले ऑफिस में इसी तकनीक का इस्तेमाल कर 1000 कॉपियां प्रिंट की गई थीं। पहली कॉपी अभी भी नॉर्दर्न प्रिंटिंग ग्रुप के ऑफिस में सुरक्षित रखी गई हैं। बाकी सभी कॉपियां दिल्ली भेज दी गई थीं। हाथ से लिखी कॉपियां दिल्ली के नेशनल म्यूजियम में रखी हैं। जबकि यादगार के तौर पर संविधान की एक प्रिंट कॉपी संसद भवन में और एक कॉपी सर्वे ऑफ़ इंडिया के देहरादून वाले म्यूजियम में रखी गई हैं।
लेफ्टिनेंट जनरल गिरीश कुमार। सर्वेयर जनरल ऑफ़ इंडिया के पद पर हैं। उनका कहना है कि इन मशीनों को मेंटेन करने का खर्च काफी ज्यादा था। इसकी टेक्नॉलजी भी पुरानी हो चुकी है। इसलिए मशीनों को तोड़कर कबाड़ के भाव बेच दिया गया। उन्होंने कहा कि इन मशीनों के लिए काफी ज्यादा स्पेस भी चाहिए होता था। उनका कहना था कि हमें ऐसी ऐतिहासिक चीजों को सुरक्षित रखना अच्छी बात होती, लेकिन हमें आगे बढ़ना चाहिए।
साभार – दल्लनटॉप