राजस्थान में एक संस्कृत स्कूल ऐसा है, जहां पढ़ने वाले 80 फीसदी से ज्यादा छात्र मुस्लिम हैं। इस स्कूल में जितने बच्चे हर साल दाखिला लेना चाहते हैं, उतनों का नामांकन सिर्फ इसलिए नहीं हो पाता क्योंकि स्कूल के पास जगह की कमी है।
सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि इस स्कूल में पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे गरीब परिवारों से आते हैं, लेकिन उन्होंने संस्कृत भाषा को अपनी जीवनधारा बना चुके हैं। वे सिर्फ अपनी शिक्षा को संस्कृत तालीम तक ही सीमित नहीं रखना चाहते हैं, बल्कि बड़े होकर दूसरे बच्चों को भी दुनिया की इस प्राचीन और वैज्ञानिक भाषा से रूबरू करना चाहते हैं।
संस्कृत भाषा जीवन जीने का तरीका बन गई
पद्मासन में बैठे छात्रों को संस्कृत के श्लोकों का उच्चारण करते देखकर कोई भी इस भ्रम में पड़ सकता है कि यह स्कूल नहीं बल्कि एक प्राचीन गुरुकुल है। यह नजारा है राजस्थान की राजधानी जयपुर के राजकीय ठाकुर हरिसिंह शेखावत मंडावा प्रवेशिका संस्कृत विद्यालय का। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस राजकीय स्कूल में पढ़ने वाले 277 छात्रों में 222 मुस्लिम हैं। यहां के छात्रों के लिए संस्कृत भाषा जीवन जीने का एक तरीका बन गई है।
संस्कृत में दिया जवाब
दिलचस्प बात ये है कि इस स्कूल के बच्चे आगे चलकर संस्कृत पढ़ाने में ही अपना करियर बनाना चाहते हैं। जब 9 साल की इल्मा कुरैशी से उसका नाम पूछा गया तो उसने बड़े प्यार से संस्कृत में ही जवाब दिया- ‘मम नाम इल्मा कुरैशी।’ इल्मा अकेले नहीं है। उसका भाई रेहान भी संस्कृत के कठिन वाक्यों को जल्दी याद कर लेता है।
चार भाषाओं पर कमांड
इल्मा के मुताबिक, ‘मुझे संस्कृत पसंद है और मैं अपने भाई-बहनों, रिश्तेदार और सभी को संस्कृत भाषा सिखाना चाहती हूं।’ संस्कृत की पढ़ाई करने का बाद इल्मा शाम के वक्त धार्मिक शिक्षा के लिए मदरसे भी जाती है। स्कूल के हेडमास्टर वेद निधि शर्मा का कहना है कि इन मुस्लिम बच्चों को चार भाषाओं संस्कृत, अरबी, हिंदी और ऊर्दू पर कमांड है।
लड़कियों की संख्या काफी ज्यादा
हेडमास्टर शर्मा ने कहा, ‘चूंकि ये लोग कई भाषाएं जानते हैं, इसलिए इनका संस्कृत के कठिन शब्दों का उच्चारण बहुत अच्छा है। ये लोग संस्कृत में हमेशा अच्छे नंबर लाते हैं, इसकी वजह से हमारा स्कूल अन्य स्कूलों से बेहतर है। सभी बच्चे बहुत गरीब परिवार से हैं और ज्यादातर बच्चे पढ़ाई के बाद काम करके अपने परिवार की मदद करते हैं। विशेषकर लड़कियों की संख्या यहां पर काफी ज्यादा है।’