केंद्रीय मंत्री- आर० के० सिंह ने घोषणा करते हुए कहा कि कोईलवर पुल के समानांतर बन रहे नए पुल का नाम डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह के नाम पर होगा!एवँ प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के तहत इस बार डॉ.वशिष्ठ नारायण सिंह के पैतृक गांव बसंतपुर को गोद लेंगे!
भोजपुर आरा के सांसद सह केंद्रीय ऊर्जा राज्यमंत्रीबआरके सिंह ने आज समस्त ग्रामीणों के समक्ष यह घोषणा की कि कोईलवर पुल के समानांतर बन रहे नए पुल का नाम डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह के नाम पर होगा और प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के तहत वह इस बार डॉ.वशिष्ठ नारायण सिंह के पैतृक गांव #बसंतपुर को गोद लेंगे!
गणितज्ञ वशिष्ठ बाबू के नाम पर पटना विवि में होगा शोध संस्थान, KC सिन्हा ने दिया 1।25 लाख : गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के नाम पर पटना विश्विद्यालय में होगा शोध संस्थान। पटना साइंस कॉलेज के प्राचार्य प्रो के सी सिन्हा ने बिहार शिक्षक सम्मान की पूरी राशि 1।25 लाख संस्थान को डोनेट किया। सभी शिक्षक और कर्मचारी संस्थान के लिए डोनेट करेंगे राशि। वशिष्ट बाबू के शोध कार्य की पूरी जानकारी संस्थान में संजोया जाएगा।
आशोक राजपथ स्थित कुल्हरिया कांप्लेक्स के तीसरे तल्ले पर स्थित कमरा नंबर 302। महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह और उनके मंझले भाई अयोध्या नारायण सिंह का परिवार इसी मकान में किराया लेकर पिछले दस सालों से रह रहा है। जैसे ही आप कमरे में प्रवेश करते हैं, दाहिनी ओर वशिष्ठ बाबू की कुर्सी और उनका टेबल है। बायीं ओर किताबों से भरा टेबुल और यहीं से दाहिने उनके कमरे में प्रवेश करते ही दर्जनों प्रशस्ति पत्र टंगे हुए हैं। वहीं उनका बिस्तर है जिस पर उनकी बांसुरी, रामचरितमानस, भगवद गीता और कोने में उनके व्यक्तित्व की पहचान टोपी पड़ी हुई है। अयोध्या नारायण सिंह कहते हैं कि हमारे परिवार को नेतरहाट ओल्ड ब्वायज एसोसिएशन ने बड़ी मदद दी है। 2013 से अबतक लगातार हर महीने की शुरुआत में ही 20 हजार रुपये आ जाते थे। इसके अलावा उन्हें किसी ने मदद नहीं की। सेना में सूबेदार पद से रिटायर हुए अयोध्या सिंह कहते हैं कि उसी पैसे से इस फ्लैट का किराया चुका रहे थे, वशिष्ठ जी का इलाज चल रहा था। उनकी दवाइयां हर महीने पहुंच रही थी।
वशिष्ठ बाबू के प्रतिभा के किस्से अबतक इतने प्रकाशित हो चुके हैं कि शायद ही कोई पक्ष ऐसा होगा जो लोग नहीं जानते। कुल्हरिया कॉम्पलेक्स में ही हमें नेतरहाट ओल्ड ब्वायज एसोसिएशन के सदस्य और 1957 से 1963 ई तक साथ में पढ़े नरेंद्र नारायण पांडे मिल गये। वे कहते हैं कि छह साल हमलोग साथ में पढ़े। नेतरहाट में हमलोग आश्रम की तरह पढ़ते थे। परिसर की सफाई करते थे, खाना परोसते थे, बर्तन की सफाई करते थे और शौचालय को भी साफ सुथरा रखते थे। वशिष्ठ हमारे साथ 1957 से 63 तक थे। नेतरहाट पहुंचते ही वे शिक्षकों की नजर में आ गये थे, क्योंकि वे टॉप करते थे। गणित और साइंस का तो छोड़ ही दीजिए, हिंदी और अंग्रेजी में वे काफी अच्छे थे। हमलोगों जिस गणित की किताब, जिसे चक्रवर्ती कहते थे, उसे बनाने में पसीने छूटते थे। उसको वे नौवें क्लास में ही दो बार खत्म कर चुके थे। अल्जेबरा, मैथेमैटिक्स में ऐसी शब्दावलियों का इस्तेमाल करते थे, जो हमने ग्रेजुएशन में जाना था। हायर सेकेंड्री करने के दौरान वे कॉलेज तक का कोर्स कंप्लीट कर चुके थे। एक बार उनकी तबीयत खराब हो गयी तब भी पढ़ते रहते थे। ऐसा पढ़ाकू न मैंने जीवन में कभी देखा था और न देख सकूंगा।