एक इंसान, जिसकी जिंदगी पर, जिसके रहन-सहन पर, जिसके अंदाज पर हमेशा सवाल किए गए। उसकी बहुत सी खूबियों को दरकिनार करने की कोशिश रही, मगर अवाम की अथाह मोहब्बत के आगे ऐसी कोशिशें दम तोड़ती रहीं। उसने कभी धीरे-धीरे, तो कभी तेज-तेज देश को बुना। अगर उसकी रखी नींव की बात करेंगे, तो डिस्कवरी ऑफ इंडिया से बहुत बड़ी-बड़ी किताबें लिख जाएंगी।
आजादी की लड़ाई में कोई पूरे परिवार संग जेल गया, ऐसे उदाहरण नेहरू के सिवा कम ही हैं।
जिन्हें नहीं पता या जो जानना भी नहीं चाहते या वे, जो अभी अक्लमंद हुए हैं या अभी-अभी देशभक्त हुए हैं, उनके लिए उसे बर्दाश्त करना मुश्किल है। उसने देश में संविधान, जल-थल-वायु सेना, डाकघर, बैंक, आईआईटी, आईआईएम, यूजीसी, अस्पताल, उद्योग, यूनिवर्सिटी, स्कूल, खेती, नहर, सभी क्षेत्रों में काम किया। और दुनिया ने देखा कि सैकड़ों साल से जंजीरों में कसा देश कैसे एकदम से खड़ा होता है। उसने हर स्वतंत्रता सेनानी को पेंशन और दूसरी आर्थिक-सामाजिक सहायताएं दीं। अपने मुंह पर अपनी आलोचना करने का हक दिया। वह हर एक से मुस्कराता हुआ, दोस्त-दुश्मन को गले लगाता हुआ आगे बढ़ता रहा।. मैं नाम भूल रहा हूं उस पाकिस्तानी लेखक का, जिसने लिखा था कि भारत और पाकिस्तान में सबसे बड़ा फर्क यह है कि भारत के पास नेहरू थे।
हाफिज किदवई की फेसबुक वॉल से वाया हिन्दुस्तान दैनिक