प्लास्टिक की बजाय कागज और सूती थैलों को पर्यावरण के लिए जितना बेहतर माना जाता है उतने वो हैं नहीं। विशेषज्ञों का कहना है कि ये सभी बैग पर्यावरण के लिहाज से नुकसानदेह हैं और नया बैग खरीदने से हमेशा बचा जाना चाहिए। ये बात कागज और सूती थैलों पर उतनी ही लागू होती है बल्कि पर्यावरण के लिए ये प्लास्टिक से भी बुरे साबित होते हैं क्योंकि प्लास्टिक को रिसाइकिल किया जा सकता है।
समस्या ये है कि जब हम सोचते हैं कि पर्यावरण के अनुकूल कौन सा बैग है, तो हम केवल ये सोचते हैं कि इसकी मियाद पूरी होने के बाद इसके साथ क्या होगा और हम एक बैग के बनाने पर आने वाली कीमत को भूल जाते हैं।
बीबीसी पर जारी रिपोर्ट के अनुसार अगर हम वास्तविक पर्यावरणीय कीमत का आकलन करें तो कई फैक्टर्स ध्यान में रखना चाहिए। मसलन बैग बनाने के दौरान कितनी ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाता है। इसे कितनी बार दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। रिसाइकिल करने में ये कितना आसान है। और अगर इसे फेंक दिया जाए तो ये कितने समय में नष्ट होता है। कागज और सूती का थैला बनाने में पर्यावरण का नुकसान होता है।
उत्तरी आयरलैंड असेंबली द्वारा 2011 में पेश शोध पत्र के अनुसार, प्लास्टिक बैग के मुकाबले इन थैलों को बनाने में चार गुना ऊर्जा की खपत होती है। चूंकि कागज पेड़ों को काटकर बनाया जाता है तो इससे जंगलों पर भी असर पड़ता है। इस रिसर्च के मुताबिक, सिंगल यूज प्लास्टिक बनाने की तुलना में इसके निर्माण में बहुत अधिक पानी लगता है और इससे बहुत अधिक गाढ़ा जहरीला केमिकल निकलता है।
नॉर्थम्प्टन यूनिवर्सिटी में टिकाऊ कचरा प्रबंधन के प्रोफेसर माग्ररेट बैट्स के अनुसार, ये बहुत भारी भी होते हैं। इसलिए इस बात से अलग कि वे कहां बने हैं, उन्हें दुकानों तक पहुंचाने में परिवहन के इस्तेमाल से पर्यावरण का अतिरिक्त नुकसान भी शामिल हैं। हालांकि पर्यावरण के कुछ नुकसान को नए जंगल लगाकर पूरा किया जा सकता है, जिससे जलवाऊ परिवर्तन के असर को कम किया जा सकता है क्योंकि पेड़ वायुमंडल में मौजूद कार्बन को सोखते हैं।
इसके बाद सूती बैग आते हैं, जिन्हें सबसे बुरा माना जाता है। इसे बनाने में अधिक पानी की जरूरत होती है। मार्गरेट के अनुसार, सूती बहुत ही खर्चीली फसल है, इसलिए इसके साथ भी वही चिंताएं हैं जो नए फैशन के साथ हैं। साल 2006 में ब्रिटेन की पर्यावरण एजेंसी ने अलग-अलग चीजों से बने थैलों की पड़ताल की ताकि ये पता लगाया जा सके कि सिंगल यूज प्लास्टिक बैग के मुकाबले कम पर्यावरणीय नुकसान के लिए उन्हें कितनी बार इस्तेमाल करने की जरूरत है.समें पाया गया है कि कागज के थैलों को कम से कम तीन बार इस्तेमाल करने जरूरत है जबकि प्लास्टिक बैग को चार बार इस्तेमाल करने की जरूरत है। दूसरी तरफ एजेंसी ने पाया कि सूती थैलों को 131 बार इस्तेमाल किए जाने की जरूरत है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसे बनाने में बहुत अधिक ऊर्जा की खपत होती है। लेकिन अगर कागज के थैलों को अपेक्षाकृत कम बार इस्तेमाल करने की जरूरत है तो एक व्यावहारिक सवाल है कि क्या ये तीन बार सुपर मार्केट जाने तक साथ देगा?
क्योंकि ये बहुत टिकाऊ नहीं होते हैं और इनके फटने का खतरा बहुत ज्यादा होता है। एजेंसी ने अपने नतीजे में कहा कि बहुत कम टिकाऊपन होने के कारण जितनी बार दोबारा इस्तेमाल की जरूरत है उतनी बार कागज के थैले को इस्तेमाल करना मुश्किल है।
जबकि सूती थैले ज्यादा टिकाऊ होते है लेकिन कागज के थैले भले ही टिकाऊ नहीं होते, वे जल्द नष्ट होते हैं, इसलिए कचरे या वन्य जीवन के लिए कम नुकसानदेह होते हैं। प्लास्टिक बैग को नष्ट होने में 400 से 1000 साल का वक्त लगता है और प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या के लिए ये एक प्रतीक बन गया है। लेकिन प्लास्टिक बैग बनाने वाले व्यक्ति स्टेन गस्टाफ के परिवार को लगता है कि उन्होंने इसकी खोज इस ग्रह की मदद के लिए की थी और वो होते तो मौजूदा हालात को देख कर हैरान और परेशान हो जाते।