डियर बिहारियों,
अमूमन मैं डियर कहने से बचता हूँ । लेकिन आज मिज़ाज लल्लनटॉप हो रहा है तो लिख दे रहे हैं । आखिरकार 20 साल बाद एक बार फिर से किसी बिहारी ने यूपीएससी की परीक्षा में पास किया है । लहालोट होना तो बनता ही है । वो भी ऐसे कि लोग शुभम के नाम की ऐसी माला जपे जा रहे हैं जैसे उसके युपीएससी क्रैक करने में आपका भी बहुत बड़ा योगदान हो । और आपने ही उन्हे रट्टा मरवा-मरवाकर यूपीएससी क्रैक करवा दिया हो । अरे बिहारी बबुआ शुभम ने जो युपीएससी पास किया है उसमें बिहार का बस उतना ही योगदान है जितना कि उस कलम का जिससे लिखकर उन्होने ये परीक्षा पास की है । क्योंकि बोकारो के चिन्मया स्कूल से पढ़ने वाले शुभम ने आईआईटी बॉम्बे से बीटेक किया है तभी उनहे ये सफलता मिल सकी है । इस सफलता के पीछे पुरी कहानी बस इतनी मात्र है कि उन्होंने बिहार की धरती पर जन्म लिया है ।
हम बिहारियों की एक खासियत है कि हमलोग लहालोट होना शुरू कर देते हैं । जैसे ही कोई टॉपर हुआ तो दो कनेक्शन निकालना शुरू कर देते हैं पहला ये कि उसका हमारे से क्या संबंध है मसलन वो हमारे जात का है कि नहीं प्रदेश का है कि नहीं इससे भी ज्यादा वो हमारे मौसा के फुफा के चाची के बेटी के ससुर का मौसा है कि नहीं । दुसरा कनेक्शन होता है उसके गरीबी का । लड़के के पिताजी ने खैनी बेचा, रिक्शा चलाया, मैला ढ़ोया कि नहीं । अरे भाई कोई भी काम बुरा थोड़े न है जो आपलोग ये कनेक्शन ढ़ूंढना शुरू कर देते हो ।
वैसे आप हमें निगेटिव समझ सकते हैं लेकिन होना यही है कि यही बिहारी जब आईएएस बन जाएगा तो नाईजीरिया में बैठकर तुम्हारे गाँव समाज का विकास नहीं कर पाएगा । अंडमान में जरूर सड़क बनवा देगा या फिर यूपी में जरूर कुछ क्रांतिकारी कर देगा लेकिन अपने क्षेत्र को कितना फायदा पहुँचा सकेगा ये तो बाद की बात होगी । खैर लहालोट होने से पहले ये भी जान लीजिये कि उनके सफलता के पीछे किसका हाथ है । कैसे उसने मेहनत की और क्या–क्या पापड़ बेलने पड़े । तुम्हार बिहारी