राष्ट्र आज अपने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्मदिन मना रहा है। जिनकी रचनाओं को पढ़ने से रग-रग फड़क उठे ऐसे कवि की रचनाएं पढ़ी जा रही हैं। खास बात यह कि जिस पटना विश्वविद्यालय के छात्र दिनकर रहे, वहां भी उनकी रचनाओं को पढ़ाया जा रहा है। शांति नहीं तब तक जब तक, सुख- भाग न नर का सम हो, नहीं किसी को बहुत अधिक हो, नहीं किसी को कम हो। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की रचना कुरुक्षेत्र की इन पंक्तियों को पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के कालेजों में हिंदी विषय से स्नातक करने वाले छात्र एक बार पढ़ने के बाद कई बार जरूर दोहराते हैं। पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय में रामधारी सिंह दिनकर की उर्वशी व कुरुक्षेत्र तथा पटना विश्वविद्यालय में उर्वशी एवं रेणुका की पढ़ाई कराई जाती है।
संस्कृति के चार अध्याय पढ़ाने की चाहत
कालेज आफ कामर्स में पढ़ा रहे हिंदी के प्राध्यापक प्रो। विनोद कुमार मंगलम ने बताया कि वे 26 वर्षों से राष्ट्र कवि दिनकर को यूजी और पीजी दोनों में पढ़ा रहे हैं। आने वाले दिनों में यह जरूर इच्छा है कि उनकी महान रचना संस्कृति के चार अध्याय को पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग में बच्चों को पढ़ाया जाए। पाटलिपुत्र विवि में पीजी द्वितीय सेमेस्टर के पंचम पत्र में उर्वशी एवं स्नातक दूसरे वर्ष में कुरुक्षेत्र की पढ़ाई हो रही है।
गर्व होता है कि राष्ट्रकवि इसी विवि के छात्र थे
पटना विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो। तरुण कुमार ने बताया कि सभी को गर्व होता है कि राष्ट्रकवि पटना विश्वविद्यालय के छात्र थे। वर्ष 1928 में वे पटना कालेज से हिंदी में स्नातक करने आए थे। तब हिंदी में स्नातक की पढ़ाई नहीं होती थी। उनके लिए विभाग स्तर पर भी वार्ता हुई थी। लेकिन, दाखिला नहीं हुआ था। इसके बाद उन्होंने इतिहास से स्नातक किया। हालांकि उनके जाने तक पटना कालेज में हिंदी स्नातक की पढ़ाई आरंभ हो गई थी। बताया कि पीजी तृतीय सेमेस्टर में उर्वशी एवं स्नातक प्रथम वर्ष में रेणुका की पढ़ाई होती है। उन्होंने बताया कि दिनकर रचनावली के नौ गद्य खंड के संपादन का उन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
62 के युद्ध में चीन से हार पर दिनकर ने संसद में सुनाई कविता तो तत्कालीन प्रधानमंत्री ने झुका लिया अपना सिर
गंगा किनारे बसे गांव सिमरिया जिला बेगूसराय के लाल राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। हर कोई उनके विद्धता का कायल है, इसलिए कुछ ऐसी बातों के बारे में बताते हैं जो बहुत कम लोगों को पता है। रामधारी सिंह दिनकर स्वभाव से सौम्य और मृदुभाषी थे लेकिन जब बात देश के हित-अहित की आती थी तो वो बेबाक टिप्पणी से कतराते नहीं थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने रामधारी सिंह दिनकर को राज्यसभा के लिए नामित किया लेकिन बिना लाग लपेट के उन्होंने देशहित में नेहरू के खिलाफ आवाज बुलंद करने में हिचकिचाहट नहीं दिखाई।
दिनकर के कविता पाठ से जब संसद सन्न हो गया
1962 में चीन से हार के बाद संसद में दिनकर ने कविता पाठ किया…
“रे रोक युद्धिष्ठिर को न यहां जाने दे उनको स्वर्गधीर
फिरा दे हमें गांडीव गदा लौटा दे अर्जुन भीम वीर”
इस कविता पाठ को सुन तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू का सिर झुक गया था…ये घटना आज भी भारतीय राजनीति के इतिहास की चुनिंदा क्रांतिकारी घटनाओं में से एक है…
नेहरू को दिनकर की दो टूक
हिंदी के राष्ट्रकवि ने एक बार राज्यसभा में नेहरू की ओर इशारा करते हए कहा कि, “क्या आपने हिंदी को राष्ट्रभाषा इसलिए बनाया है, ताकि हिंदीभाषियों को रोज अपशब्द सुनाए जा सकें?” ये सुनकर नेहरू सहित सभा में बैठे सभी लोग हैरान रह गए। 20 जून 1962 का वो दिन था। उस दिन दिनकर राज्यसभा में खड़े हुए और हिंदी के अपमान को लेकर बहुत सख्त स्वर में बोले। उन्होंने कहा देश में जब भी हिंदी को लेकर कोई बात होती है, तो देश के नेतागण ही नहीं बल्कि कथित बुद्धिजीवी भी हिंदी वालों को अपशब्द कहे बिना आगे नहीं बढ़ते। पता नहीं इस परिपाटी का आरम्भ किसने किया है। दिनकर ने कहा कि, उनका ख्याल है कि इस परिपाटी को प्रेरणा प्रधानमंत्री से मिली है और पता नहीं, तेरह भाषाओं की क्या किस्मत है कि प्रधानमंत्री ने उनके बारे में कभी कुछ नहीं कहा, किन्तु हिंदी के बारे में उन्होंने आज तक कोई अच्छी बात नहीं कही। ये सुनकर पूरी सभा सन्न रह गई। सभा में गहरा सन्नाटा छा गया। दिनकर ने फिर कहा- ‘मैं इस सभा और खासकर प्रधानमंत्री नेहरू से कहना चाहता हूं कि हिंदी की निंदा करना बंद की जाए। हिंदी की निंदा से इस देश की आत्मा को गहरी चोट पहंचती है।
परिचय और पुरस्कार
दिनकर’ जी का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास राजनीति विज्ञान में बीए किया। उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया था। बीए की परीक्षा पास करने के बाद वो एक विद्यालय में अध्यापक हो गये। बिहार सरकार की सेवा में सब-रजिस्ट्रार और प्रचार विभाग के उपनिदेशक के पद पर काम किया। मुजफ्फरपुर के एलएस कॉलेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे, भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति के पद पर कार्य किया और उसके बाद भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार बने। उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से अलंकृत किया गया। उनकी पुस्तक संस्कृति के चार अध्याय के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार और उर्वशी के लिये भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। 24 अप्रैल 1974 को वो हम सबको छोड़ कर बहुत दूर चले गए।
दिनकर की चित्र का डाक टिकट
देश की आजादी की लड़ाई में भी दिनकर ने अपना योगदान दिया था। वो गांधीजी के बड़े मुरीद थे। हिंदी साहित्य के बड़े नाम दिनकर उर्दू, संस्कृत, मैथिली और अंग्रेजी भाषा के भी जानकार थे। वर्ष 1999 में उनके सम्मान में भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया। अपनी लेखनी के माध्यम से दिनकर सदैव आमजनों के बीच अमर रहेंगे।
Input : Dainik Jagran