कोरोना में सबसे अधिक मार प्राइवेट स्कूल शिक्षकों को ही पड़ी । इस दौरान ऑनलाइन क्लास के नाम पर भले ही स्कूल प्रबंधन ने मोटी राशी ली हो । लेकिन शिक्षकों के हिस्से कुछ न आया । ऐसे में शिक्षकों के सामने भूखमरी की समस्या आ गई । भुवनेश्वर की स्मृतिरेखा इनमें से एक हैं।
स्मृतिरेखा कई सालों से एक प्ले और नर्सरी स्कूल में बच्चों को पढ़ा रही थीं। मगर लॉकडाउन में उनका स्कूल बंद हुआ तो वो रोड पर आ गई। अब हालत यह है कि वो घर चलाने के लिए कचरा उठाने वाली गाड़ी चलाने पर मज़बूर हैं। स्मृतिरेखा के घर में उनके पति, दो बेटियां और परिवार के अन्य सदस्य हैं। कोरोना काल में उनके पति को भी अपनी निजी नौकरी से कोई वेतन नहीं मिल रहा था। ऐसे में स्मृतिरेखा ने जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली।
स्कूल की नौकरी जाने के बाद भी उन्होंने हिम्मत से काम लिया और भुवनेश्वर नगर निगम (बीएमसी)- ‘मु सफाईवाला’ के कचरा संग्रहण वाहन को चलाना शुरू कर दिया। वहां से दिहाड़ी के रूप में उन्हें कुछ पैसे मिल जाते हैं। इसी से वो अपने परिवार का पालन-पोषण कर रही हैं। स्मृतिरेखा के जज्बे को सलाम!