आज पीवी नरसिम्हा रॉव की 100वीं जयंती है । एक छोटे से गाँव से निकल कर भारत के सर्वोच्च पद पर जाने की उनकी कहानी हमेशा से राजनेताओं के लिये प्रेरणास्त्रोत रही है । श्री पी.वी. नरसिंह राव का जन्म 28 जून, 1921 में आंध्र प्रदेश के एक छोटे से गांव करीम नगर में हुआ था । बहुत ही कम लोग उनके पूरे नाम पामुलापति वेंकट नरसिंह राव से परिचित हैं । श्री राव ने उस्मानिया विश्विद्यालय तथा नागपुर और मुंबई के विश्विद्यालयों से विधि संकाय में स्नातक और स्नातकोत्तर की उपाधियां प्राप्त की । पी।वी नरसिंह राव राजनीति के अतिरिक्त कला, साहित्य, संगीत आदि विभिन्न विषयों में भी रूचि रखते थे । नरसिंह राव की विभिन्न भारतीय भाषाओं पर भी अच्छी पकड़ थी । अलग-अलग भाषाओं को सीखना और उन्हें बोलचाल में प्रयोग करना उनका अनूठा शौक था । पी.वी. नरसिंह राव को भारत के पहले दक्षिण भारतीय प्रधानमंत्री बनने का भी गौरव प्राप्त है ।
राजनीति से लेने वाले थे संन्यास, बन गए भारत के प्रधानमंत्री
अप्रैल 1991 में देश के अखबारों में एक छोटी सी खबर छपी। खबर पीवी नरसिम्हा रावके बारे में थी। इसमें कहा गया था कि पूर्व केंद्रीय मंत्री राव अब राजनीति से संन्यास लेकर आंध्र प्रदेश के अपने गांव जाना चाहते हैं, जहां बाकी बचा जीवन लिखने-पढ़ने में गुजारेंगे। वो दिल्ली के अपने बंगले को खाली करके सामानों की पैकिंग करा रहे थे।
तभी 21 मई को ऐसी खबर आई, जिसने उनकी भविष्य की योजनाओं को बदलकर रख दिया। राजीव गांधी चेन्नई के पास श्रीपेराम्बदूर में भाषण देने गए थे, तभी आत्मघाती हमले में उनकी मौत हो गई। इसके बाद लोकसभा चुनावों में परिणामों की जो स्थिति बनी, उसमें कांग्रेस ने सर्वसम्मति से उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे उपयुक्त पाया।
इसके बाद उनका बंधा हुआ सामान खुल गया। वो उस दौर में देश के प्रधानमंत्री बने, जब आर्थिक तौर पर देश सबसे ज्यादा बुरे हाल में था। कुछ समय पहले ही चंद्रशेखर सरकार को अपना सोना बेचना पड़ा था। राव के सामने दो बड़ी चुनौतियां थीं – पहली अल्पमत सरकार को चलाना और दूसरा देश को आर्थिक बदहाली से निकालना। उन्होंने दोनों ही काम बखूबी किये। हालांकि दोनों के लिए उन्हें तलवार की धार पर चलना पड़ा। ऐसे ऐसे करतब दिखाने पड़े कि वो ना केवल आलोचनाओं के शिकार बने बल्कि सोनिया गांधी से संबंधों में इस तरह दरार पड़ी कि वो कभी भर नहीं पाई।
कांग्रेस में भी उनके आर्थिक सुधारों पर उठते थे सवाल
उन पर तरह तरह के आरोप भी लगे, जिसमें भ्रष्टाचार से लेकर मौनी बाबा बनने और कांग्रेस में अपनी अलग कोटरी बनाने की थी। लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री बनते ही जब रिजर्व बैंक के गर्वनर रहे मनमोहन सिंह को अपना वित्त मंत्री बनाया। इसके बाद देश में पहली बार बड़े पैमाने पर ऐसे आर्थिक सुधार शुरू हुए, जिसकी उस समय बहुत आलोचनाएं हुईं।
कांग्रेस में उनके विरोधी उन पर आरोप लगाने लगा कि वो देश को गांधी-नेहरू की नीतियों के खिलाफ ले जा रहे हैं। लेकिन इन नई आर्थिक नीतियों और उदारीकरण का ही परिणाम था कि देश बदलने लगा। विकास की तस्वीर ही बदलने लगी। ये नीतियां ही आज के भारत की नींव बनी, जिसमें दुनिया में बड़ी आर्थिक ताकतों में गिना जाने लगा। तेजी से देश का आर्थिक परिदृश्य बदला और समृद्धि आने लगी।
बाबरी ध्वंस में जिम्मेदार ठहराए गए
6 दिसंबर 1992 को जब बाबरी ढांचे का ध्वंस हुआ तो नरसिम्हा राव को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया। माना गया कि इसमें उनकी भी मौन सहमति थी, तभी केंद्र सरकार ने उसे रोकने के लिए वो कदम नहीं उठाए, जो उठाए जाने चाहिए थे। नरसिम्हा राव की जीवनी “हाफ लॉयन – हाउ पीवी नरसिम्हा राव ट्रांसफार्म्ड इंडिया” के लेखक विनय सीतापति के अनुसार, उनका शोध बताता है कि यह बात ग़लत है कि बाबरी मस्जिद गिराए जाने के समय नरसिम्हा राव सो रहे थे या पूजा कर रहे थे। नरेश चंद्रा और गृह सचिव माधव गोडबोले इस बात की पुष्टि करते हैं कि वो उनसे लगातार संपर्क में थे और एक-एक मिनट की सूचना ले रहे थे।