मिल्खा सिंह भारत के इकलौते ऐसे एथलीट हैं जिन्होंने 400 मीटर की दौड़ में एशियाई खेलों के साथ साथ कॉमनवेल्थ खेलों में भी गोल्ड मेडल जीता. उन्होंने 1962 में भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की कप्तान रह चुकी निर्मल कौर से विवाह किया था. निर्मल कौर से उनकी पहली मुलाकात कोलंबो में हुई थी. उनके 4 बच्चे हैं, जिनमे 3 बेटियां और एक बेटा है. उनके बेटे जीव मिल्खा सिंह एक नामी गोल्फर हैं.
‘फ्लाइंग सिख’ के नाम से मशहूर भारत के महान धावक मिल्खा सिंह का कल देर रात निधन हो गया. 91 वर्षीय मिल्खा सिंह को कोरोना होने पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां गुरुवार को उनकी रिपोर्ट निगेटिव तो आ गई थी लेकिन कल उनकी हालत नाजुक हो गई और उन्होंने जिंदगी का साथ छोड़ दिया. मिल्खा सिंह भारत के खेल इतिहास के सबसे सफल एथलीट थे. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु से लेकर पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान तक सब मिल्खा के हुनर के मुरीद थे.
मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवम्बर 1929 गोविंदपुरा (जो अब पाकिस्तान का हिस्सा हैं) में एक सिख परिवार में हुआ था. उनका बचपन बेहद कठिन दौर से गुजरा. भारत के विभाजन के बाद हुए दंगों में मिल्खा सिंह ने अपने मां-बाप और कई भाई-बहन को खो दिया. उनके अंदर दौड़ने को लेकर एक जुनून बचपन से ही था. वो अपने घर से स्कूल और स्कूल से घर की 10 किलोमीटर की दूरी दौड़ कर पूरी करते थे.
ऐसे मिला ‘फ्लाइंग सिख‘ का खिताब
मिल्खा सिंह को मिले ‘फ्लाइंग सिख’ के खिताब की कहानी बेहद दिलचस्प है और इसका संबंध पाकिस्तान से जुड़ा हुआ है. 1960 के रोम ओलिंपिक में पदक से चूकने का मिल्खा सिंह के मन में खासा मलाल था. इसी साल उन्हें पाकिस्तान में आयोजित इंटरनेशनल एथलीट कम्पटिशन में हिस्सा लेने का न्योता मिला. मिल्खा के मन में लंबे समय से बंटवारे का दर्द था और वहां से जुड़ी यादों के चलते वो पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे. हालांकि बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समझाने पर उन्होंने पाकिस्तान जाने का फैसला किया.
पाकिस्तान में उस समय एथलेटिक्स में अब्दुल खालिक का नाम बेहद मशहूर था. उन्हें वहां का सबसे तेज धावक माना जाता था. यहां मिल्खा सिंह का मुकाबला उन्हीं से था. अब्दुल खालिक के साथ हुई इस दौड़ में हालात मिल्खा के खिलाफ थे और पूरा स्टेडियम अपने हीरो का जोश बढ़ा रहा था लेकिन मिल्खा की रफ्तार के सामने खालिक टिक नहीं पाए. रेस के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने मिल्खा सिंह को ‘फ्लाइंग सिख’ का नाम दिया और कहा ‘आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो. इसलिए हम तुम्हें फ्लाइंग सिख का खिताब देते हैं.’ इसके बाद से ही वो इस नाम से दुनिया भर में मशहूर हो गए. खेलों में उनके अतुल्य योगदान के लिये भारत सरकार ने उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से भी सम्मानित किया है.
1951 में हुए सेना में भर्ती
चार बार कोशिश करने के बाद साल 1951 में मिल्खा सिंह सेना में भर्ती हुए. भर्ती के दौरान हुई क्रॉस-कंट्री रेस में वो छठे स्थान पर आये थे, इसलिए सेना ने उन्हें खेलकूद में स्पेशल ट्रेनिंग के लिए चुना था. इस दौरान सिकंदराबाद के EME सेंटर में ही उन्हें धावक के तौर पर अपने टैलेंट के बारे में पता चला और वही से उनके करियर की शुरुआत हुई. मिल्खा पर एथलीट बनने का जुनून इस कदर हावी हो गया था कि वो अभ्यास के लिए चलती ट्रेन के साथ दौड़ लगाते थे. इस दौरान कई बार उनका खून भी बह जाता था और सांस भी नहीं ली जाती थी, लेकिन फिर भी वो दिन-रात लगातार अभ्यास करते रहते थे.
1956 में मेलबर्न में आयोजित हुए ओलंपिक खेलों में उन्होंने पहली बार 200 मीटर और 400 मीटर की रेस में भाग लिया. एक एथलीट के तौर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनका ये पहला अनुभव भले ही अच्छा न रहा हो लेकिन ये टूर उनके लिए आगे चलकर बेहद फायदेमंद साबित हुआ. उस दौरान विश्व चैंपियन एथलीट चार्ल्स जेनकिंस के साथ हुई मुलाकात ने उनके लिए भविष्य में बहुत बड़ी प्रेरणा का काम किया.