अभी पुराने पड़े मास्क और सैनिटाइजर नदी किनारे दफना कर घर लौटा ही था और चैन की दो मिनट की नींद लेने के लिय बिस्तर पर गया ही था कि दरवाजे की घंटी बज गई । इस भरी दोपहरी में बिन बुलाए मेहमान का यूँ आ टपकना थोड़ा सा नागवार गुजरा लेकिन बार-बार घंटी की आवाज कानों को इस प्रकार बुलाने लगी जैसे डीजे का नागिन धुन नए-नए जवान हुए लौंडों को अपने पास बुलाता है । अनमने मन से ही सही उठकर दरवाजा खोला तो सामने बड़े ठसक के साथ कोरोना खड़ा था ।
हमने छूटते ही कहा – भैया, कोरोना अभी तो तुम्हारा विसर्जन करके लौट रहा हूँ अब फिर दुबारा इधर कैसे? कोरोना ने बड़ी मासुमियत से जवाब दिया भैया गर्मी की छुट्टी मनाने आए हैं । हमने कहा- अमा यार ये भी कोई जगह है छुट्टियाँ मनाने की बंगाल जाओ हावड़ा ब्रिज देखो, साइंस म्युजियम जाओ, विक्टोरिया देखो यहाँ क्या रखा है, भूखा नंगा प्रदेश है । रोज कमाता है तो खाता है, तुम्हे कहाँ से खिला पाएगा । कोरोना अड़ गया कहा – देखो भैया बात ये है कि कहीं भी भेज दो लेकिन बंगाल न जाउंगा । मैने पूछ लिया – क्यों भाई वहाँ कौन सी चुडैल बैठी है कि तुम्हे जाने से डर लग रहा है । या किसी गंजे बाबा का डर सता रहा है कि फूंक मारकर तुम्हे भस्म कर देगा । कोरोना ने मासुमियत से कहा – भाई बात ये है कि कहीं भी भेज दो लेकिन चुनावी राज्य जाने के लिये मत कहो । जहाँ जाने से लोकतंत्र पर खतरा मंडरा जाए वहां जाने की बदनामी भला कौन झेलें । इसलिये अभी तो इधर ही होली का होला निकालने आई हूँ ।
इधर आ रही थी तो देखा तुम बड़े जोश में आकर मास्क, सैनिटाइजर दफना रहे हो तो सोचा तुम्हारे घर ही चल चलूँ । आखिर तुम्हे भी तो पता चले कि अमिताभ बच्चन इतने दिन से चीख-चीख कर क्यों कह रहे हैं जब तक दवाई नहीं तब तक ढि़लाई नहीं । बच्चू अब तो तुम आएं मेरे गिरफ्त में । कोरोना का इतना कहना था कि मैं फटाक से ड्राअर की तरफ भागा जहाँ पुलिस वाले से बचने के लिये हमने एक एक्सट्रा मास्क रख रखा था, लेकिन जल्दबाजी में मेरा पैर कुर्सी से टकराया और मुँह के बल नीचे गिरा… और अचानक से मेरी आँख खुल गई ।