दुनिया में कोरोनावायरस के आने के एक साल बाद उसके खात्मे की दवा भी आ गई है। ब्रिटेन ने बुधवार को अमेरिकी कंपनी फाइजर और जर्मन कंपनी बायोएनटेक की संयुक्त कोरोना वैक्सीन के आपात इस्तेमाल को मंजूरी दे दी। इसी के साथ तीन ट्रायल पूरे कर चुकी किसी वैक्सीन को मंजूरी देने वाला ब्रिटेन दुनिया का पहला देश भी बन गया। ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन ने कहा कि टीका जिंदगियां बचाने के साथ ही हालात को सामान्य बनाने में मदद करेगा। यूके के स्वास्थ्य मंत्री मैट हैन्कॉक ने कहा- ‘क्रिसमस से पहले, यानी अगले हफ्ते से ही 8 लाख डोज के साथ ब्रिटेन के आम लोगों को टीके लगने शुरू हो जाएंगे।’ फाइजर बेल्जियम में वैक्सीन निर्माण कर रही है। वहां से नए साल तक एक करोड़ से ज्यादा वैक्सीन डोज ब्रिटेन पहुंचाए जाएंगे।
कीमत चरण असर
कोविशील्ड 500 रु. 90%
कोवैक्सीन 1000 रु. 90%
स्पूतनिक- 5 700 रु. 95%
जायकोव- डी तय नहीं
कोविशील्ड वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने कहा कि अगले साल की शुरुआत में भारत में 10 करोड़ टीकों की आपूर्ति की तैयारी हो चुकी है।
रूसी वैक्सीन स्पूतनिक-5 के ट्रायल भारत में मंगलवार को शुरू कर दिए गए। इसके लिए रूसी कंपनी ने भारत में डॉ. रेड्डी लैबोरेटरीज के साथ करार किया है।
उधर, रूसी सरकार ने भी बुधवार को दावा किया कि वहां अगले हफ्ते सामान्य लोगों को स्पूतनिक-5 के टीके लगने शुरू हो जाएंगे।
लोग कैसे जान पाएंगे कि यह टीका सुरक्षित है?
फाइजर-बायोएनटेक ने 44 हजार लोगों पर ट्रायल किए हैं। किसी पर गंभीर दुष्प्रभाव नहीं हुआ। सिर्फ थकान और सिरदर्द के मामले थे।{भारत में फाइजर की वैक्सीन आनी क्यों मुश्किल है? क्या कंपनी से सरकार की बात हुई है?इस टीके की पैकिंग, स्टोरिंग से लेकर लगाने तक माइनस 70 डिग्री तापमान में रखना जरूरी है। भारत में ऐसी अभी कोई तैयारी नहीं है। फाइजर ने भारत में वैक्सीन लॉन्च करने को लेकर भी अभी कोई बात नहीं कही है। सूत्रों का कहना है कि भारत सरकार ने भी फाइजर से वैक्सीन के करार को लेकर बात नहीं की है।
10 साल में बनने वाली वैक्सीन 10 माह में कैसे बन गई? क्या कोई शॉर्टकट अपनाया?
आखिरी बार 1960 में सबसे तेजी से मम्स (गलसुआ) की वैक्सीन बनी थी। इनमें चार साल लगे थे। कोरोना वैक्सीन 10 महीने में बनी। लेकिन, कोई शॉर्टकट नहीं अपनाया गया। सभी चरणों के ट्रायल हुए। ब्रिटेन सरकार ने शोध पर 59 हजार करोड़ रु. खर्च किए। नियामक ने हजारों पन्नों के दस्तावेजों की जानकारी में उलझने के बजाय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से डेटा का अध्ययन किया। इससे समय बचा और मंजूरी की प्रक्रिया तेज हुई। नियामक एमएचआरए की प्रमुख जून रैनी ने कहा कि इसके लिए पूरी टीम ने चौबीसों घंटे काम किया।