सरकारों से छोटी सी विनती है कि जिस कोरोना को आपने चुनाव में छुट्टी पे भेज दिया था,उसी छुट्टी को छठ तक यानि 5 दिन और बढ़ा दें।बस,बात खतम। जो उपाय कर बिना मास्क-बिना सामाजिक दूरी कोरोना को बाँस कर किनारे कर दिया था उसी तरह का इन्तजाम छठ तक यानि 5 दिन और कर दें। जैसे कोरोना को समझा दिया कि बाबू अभी चुनाव में मत फैलना। ठीक उसी तरह और 5 दिन छठ तक के लिए समझा दें। आखिर जब कोरोना आपकी बात सुन चुनाव में नहीं फैलता है तो आपके कहने से छठ में भी तो नहीं फैलेगा। अब आप जनता के लिए इतना तो कर ही सकते हैं न।जय हो।
वाह सरकार वाह…वाह वाह वाह। ये अभी चुनाव था न? कि हमको दृष्टिभ्रम था? मार कुर्ता पजामा फलका के माईक पकड़े जब हजारों की भेंड़ीयाधसान भीड़ जुटा के भाषण दे रहे थे वोट नोचने के लिए, तब क्या किसी सत्ताधारी गिद्ध को ये नहीं दिखा कि “कोरोना फैल जायेगा”तब किसी सरकारी तंत्र को ये नहीं दिखा कि बिना मास्क और बिना सामाजिक दूरी की ये भीड़ कोरोना फैलायेगी? अब जब चुनाव हो गया, सरकारी राजकुमार लोग चुनाव जीत गए तब छठ के 4 दिन पहले ये चेतना और जनता की चिंता वापस लौटी कि अब छठ को रोकिये नदी घाट पे होने से,नहीं तो कोरोना हो जायेगा।
ये बेशर्मी और दुस्साहस लाती कहाँ से है सत्ताएं?ये बात साफ साफ समझनी होगी कि,छठ का कोरोना के इस काल में नदी घाट पे नहीं होने के सरकारी आदेश का विरोध भावुकता या आस्था के कारण नहीं कर रहा हूँ बल्कि इसका विरोध उस आधार और तर्क पे है कि जब चुनाव की रैली से कोरोना नहीं फैला तो छठ के घाट से कैसे फैल जायेगा?जब मंच से लेकर नीचे नारा लगा के नस फुला लेने वाले समर्थकों के बिना मास्क होने से कोरोना नहीं फैला तो अब छठ घाट से कैसे फैल जायेगा?
अगर सरकार ने चुनाव में रैलियां नहीं की होतीं,जनसभा नहीं की होतीं, मंच पर नेता बिना मास्क लबर-लबर नहीं किये होते और इस दौरान तमाम कोरोना बचाव सम्बंधी सरकारी गाईड लाईन का पालन किया गया होता तो भला छठ में भी इसे पालन करने में क्या दिक्कत थी हमें?लेकिन ये क्या है कि चुनाव में तो कोरोना छुट्टी पर रहता है और त्योहारों में किरिया खा के लौट आता है, ये तर्क और बेहूदा मुस्तैदी नहीं चलेगी हुजूर।
ऊपर से सरकारी खोंपड़ी का विजडन देखिये, इनका कहना है कि तालाब के पानी में सबके नहाने से कोरोना नहीं फैलेगा, नदी के पानी से फैल जायेगा।
हे सरकार, माना की नदी का पानी बहता है तो आपको लगता है कि खतरा ज्यादा फैलेगा पर क्या तालाब का पानी सीमेंट से जाम किया होता है? उस तालाब में नहाने वाले सौ-दो सौ लोगों को वो पानी नहीं छुएगी?
लेकिन खैर ये सब तर्क छोड़ दीजिये न, बताईये बस एक बात कि जब चुनाव में कोरोना नहीं था तो अब कहाँ से आया?या जब आपने कुर्सी के लिए लाखों लोगों की जिंदगी को खतरे में डालने का खतरा उठाया तो फ़िर आस्था और धर्म-भगवान के नाम पर हमें अपनी इच्छा से ये खतरा उठाने से रोकने वाले कौन हैं आप?जब आपकी कुर्सी के लिए हम मरने का खतरा उठा लिए तब तो आपने हमें नहीं रोका,मरने को झोंक दिया।अब हम जब पर्व मना रहे तो आपको हमारी चिंता क्यों हो गयी?