कल केबीसी के स्पेशल शो कर्मवीर में एक बार फिर बिहार के बिन्देश्वर पाठक ने गांधी पर पुछे गए आसान से सवाल पर अटक गए । असल में मूल रूप से बिहार के रहने वाले पाठक केबीसी में पटना से जुड़ा एक आसान से सवाल का जवाब नहीं दे पाए । सवाल यह था कि गांधी जी की सबसे ऊंची कांस्य की प्रतिमा कहां लगी है? इसका जवाब पटना था । डॉक्टर पाठक और आशीष सिंह दोनों ही इस सवाल का जवाब नहीं दे पाए । उन्होंने काफी देर तक विचार करने के बाद ‘फ्लिप द क्वेश्चन’ नामक लाइफ लाइन का इस्तेमाल किया और सवाल बदल दिया।
महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलने वाले डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने गेम शो में 12.50 लाख रुपये जीते और जैसे ही अमिताभ ने 25 लाख का प्रश्न पूछने का मन बनाया कि हूटर बज उठा और खेल वहीं समाप्त हो गया। डॉक्टर पाठक को सहयोग देने के लिए देश के दूसरे सबसे स्वच्छ शहर इंदौर के नगर निगम के आयुक्त आशीष सिंह दूसरी सीट पर बैठे थे।
कौन बनेगा करोड़पति के बुधवार के कर्मवीर एपिसोड में डॉ. बिंदेश्वर पाठक हॉट सीट पर बैठे थे । बिंदेश्वर पाठक को सुलभ इंटरनेशनल के जनक के रूप में जाना जाता है। उन्होंने सिर पर मैला ढोने की प्रथा को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आपने खुले में शौच करने वाली आबादी को शौचालय का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करने का काम किया है।
बिंदेश्वर पाठक का जन्म साल 1943 में बिहार के वैशाली जिले के एक गांव में एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था । घर में 9 कमरे थे, लेकिन एक में भी शौचालय नहीं था । उन्होंने बचपन से ही महिलाओं को सूर्योदय से पहले बाहर शौच जाते देखा। महिलाएं ही नहीं इस काम में पुरुषों को शर्म आती थी । वे भी सड़क किनारे आंखें नीचे कर शौच करते थे ।
पटना विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में स्नातक करने बाद उन्हें 1968-69 में बिहार गांधी जन्म शताब्दी समारोह समिति के भंगी मुक्ति विभाग में काम करने का मौका मिला । वहां पर समिति ने उन्हें सुरक्षित और सस्ती शौचालय तकनीक विकसित करने और दलितों के सम्मान के लिए काम करने को कहा ताकि उन्हें मुख्य धारा में शामिल किया जाए ।
बिंदेश्वर के जीवन में नया मोड़ तब आया, जब वह बिहार के जिले बेतिया की दलित बस्ती में तीन महीने के लिए उनके बीच रहने गए । उस समय देश में जाति-प्रथा चरम पर थी । उनके साथ रहते हुए उन्होंने कई चीजें देखीं, जिन्होंने उनकी आंखें खोल दीं। इस वर्ग की पीड़ा दर्दनाक थी । तब बिंदेश्वर ने अपना जीवन गंदगी साफ करने के लिए समर्पित करने की ठान ली ।
उन्होंने गहन शोध किया और इस विषय पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की किताब की मदद से 1968 में एक टू-पिट पोर-कलश, डिस्पोजल कंपोस्ट शौचालय का आविष्कार किया, जो सरलतापूर्वक स्थानीय वस्तुओं से, कम लागत पर बनाया जा सकता है। यह आगे चलकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानव-अपशिष्ट के निपटान के लिए बेहतरीन वैश्विक तकनीकों में से एक माना गया । शौचालय का यह प्रयोग सफल हुआ और धीरे-धीरे आंदोलन में बदल गया ।
बिंदेश्वर के इस शौचालय मॉडल को पूरे देशभर में लागू किया है। अभी तक उन्होंने पूरे देश में 9500 टॉयलेट का निर्माण करवाया है। उन्हें 2003 में पद्म भूषण अवॉर्ड से नवाजा गया। इसके अलावा उन्हें एनर्जी ग्लोबल अवॉर्ड मिल चुका है।
ज्ञात हो कि कुछ दिन पुर्व ही सिने अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा केबीसी में रामायण के एक आसान के सवाल नहीं बता पाने के कारण ट्वीटर पर ट्रोल हुई थी।